अमरसिंह राठौड़ का इतिहास | Amar Singh Rathore History in Hindi 10 Facts

By Vijay Singh Chawandia

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अमरसिंह राठौड़ । मारवाड़ रियासत के एक अद्भुत योद्धा थे । भारत के इतिहास में सैकड़ो वीर योद्धा एवं राजा हुवे है, जिन्होंने अपने रणकौशल से इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया । आज हम आपकों नागौर राजस्थान के एक ऐसे ही वीर की गौरवशाली गाथा का बखान कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगी ।

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अमरसिंह राठौड़ का जन्म परिचय

अमरसिंह राठौड़ का जन्म मारवाड़ रियासत के महाराजा गजसिंह जी प्रथम के घर विक्रम संवत 1670 यानी 12 दिसंबर 1626 को हुवा था, यह गजसिंह के सबसे बड़े पुत्र थे ।

अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों से ही अमरसिंह थोड़े उदण्ड ओर चंचल प्रवर्ति के थे, इनके इसी आचरण से उनकी अपने पिता से थोड़ी कम ही बनती थी । अमरसिंह राठौड़ को किसी दूसरे का अस्तक्षेप जरा भी पसन्द नही था अपने कार्यो में । अमरसिंह राठौड़ के इसी व्यवहार से कुंठित होकर जोधपुर महाराजा ने अपने छोटे बेटे जसवंतसिंह जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था ।

अमरसिंह राठौड़ का इतिहास

Amar Singh Rathore ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुवे जोधपुर से प्रस्तान कर दिया और लाहौर के लिए निकल पड़े । वहाँ मुगल बादशाह के दरबार मे अपना परिचय दिया । बादशाह को अमरसिंह राठौड़ की वीरता और रणकौशल का भलीभांति पता था, और इसी कूटनीति के तहत उन्होंने अमरसिंह को नागौर का सुबेदार बनाकर डेड हजार सवार का मनसब और जागीर में 5 परगने दिए ।

अमरसिंह राठौड़ एक कुशल शासक और वीरता परिचय

इतिहास में नागौर के इस वीर योद्धा को असाधारण इच्छा शक्ति, दृढ़ निश्चयधारी, और स्वतंत्रता प्रेमी के रूप में ख्याति प्राप्त है । अमरसिंह राठौड़ जीवन भर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते रहे, उन्हें कोई लालच और डर कभी अपनी बात से डिगा ना सका ऐसे थे यह वीर योद्धा ।

Amar Singh Rathore को जब पंजाब के विद्रोह को दबाने का कार्य सोप गया था तब 1640 -41 में उन्होंने पंजाब में अपना लोहा मनवाया और अपनी वीरता को समस्त भारतवर्ष में चर्चा का विषय बना दिया । अमरसिंह ने अपने पड़ोसी राज्य बीकानेर से भी युद्ध किया था और सफलतापूर्वक विजय हासिल की । इसके पश्चात बादशाह के दरबार मे उनका कद बहुत बढ़ गया था । इसी वजह से कई दरबारी उनसे जलने लगे और बादशाह के कान भरने लगे थे ।

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अमरसिंह राठौड़ और शाहजहाँ के बीच विवाद

मुगलकाल में सभी रियासतों को हाथी चराई का कर देना पड़ता था, उसे फिरचराई कहाँ जाता था । नागौर के हाथियों की चराई पर जब यह कर लगाया गया तो स्वाभिमानी अमरसिंह ने यह कर देने से मना कर दिया, इस कारण मुगल बादशाह उनसे थोड़े नाराज तो थे किन्तु वह अमरसिंह राठौड़ से किसी तरह का बैर नही लेना चाहते थे ।

इसके कुछ दिनों बाद दरबार मे केशरीसिंह जोधा को अटक जाने की आज्ञा मिली । किन्तु उन्होंने इस आदेश पालन में किन्तु-परन्तु की । इससे नाराज होकर बादशाह ने केशरीसिंह जोधा के सारे मनसब वापस ले लिए । जब यह बात अमरसिंह जी को पता चली तब बादशाह की नाराजगी की चिंता किये बगैर केशरीसिंह जोधा को 30 हजार का पट्टा ओर नागौर परगने की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौप दिया ।

अमरसिंह राठौड़ का वीरगति प्राप्त होना – Amar Singh Rathore Death In Hindi

नागौर के वीर पराकर्मी योद्धा को पता था कि दरबार मे उनके विरुद्ध कान भरे जाते है, इसलिए बादशाह की नाराजगी दूर करने हेतु वह दरबार मे पेश हुवे । बादशाह के दरबार मे सलावत खां को जैसे मौका मिल गया था आज अपने अपमान का बदला लेने का ( फिरचराई ना देने पर ) । उसने अमरसिंह राठौड़ को अपमानित करने का हर संभव प्रयास किया, इसपर शाहजहाँ भी मौन बैठा था ।

अमरसिंह राठौड़ जीवन चरित्र | Amar Singh Rathore History in Hindi

सलावत खां अपनी वाणी पर संयम खो चुका था । उसने कई उग्र शब्द कहे ताकि अमरसिंह जी का अपमान हो सके । दरबार मे जब बात हिंदुत्व और उनके धर्म की आई तो अमरसिंह राठौड़ का क्षत्रिय रक्त उबाल मारने लगा । उन्होंने अपनी तलवार निकाली और एक ही झटके में सलावत खां का सर धड़ से अलग कर दिया ।

एकाएक हुवे इस वाकिये से मुगल दरबार मे भगदड़ और हाहाकार मच गया । इससे डरकर बादशाह भी दरबार छोड़कर भाग गया । अब अमरसिंह राठौड़ की तलवार को रक्त लग चुका था, उन्होंने समस्त किले में नरसंहार करना शुरू कर दिया , जिससे मुगलिया सेना कांप गई । कहते है कि उन्होंने सैकड़ो सैनिको के सर काट दिए थे । किंतु इस लड़ाई में अत्यधिक घायल होने के कारण इस महान स्वाभिमानी वीर योद्धा ने वीरगति को प्राप्त किया ।

अमरसिंह राठौड़ से जुड़े रोचक तथ्य | Amar Singh Rathore Facts

  • अमर सिंह राठौड़ जोधपुर रियासत के राजा गजसिंह के बड़े पुत्र थे । किन्तु षड्यंत्र के कारण उनको जोधपुर की गद्दी नही मिली थी ।
  • अमरसिंह राठौड़ ने आगरा के भरे दरबार मे मुगल बादशाह शाहजहां के साले सलावत खां का सर धड़ से अलग कर दिया था ।
  • फ़िल्म निर्देशक राधाकांत ने 1970 में इनके जीवन पर एक फ़िल्म बनाई थी “वीर अमरसिंह राठौड़” । यह फ़िल्म ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट में थी ।
  • अमरसिंह जी की मृत्यु के पश्चयात उनके शव को भरे दरबार मे उठाकर किले की दीवार कूद गए थे बल्लू जी चम्पावत ।
  • अपने स्वाभिमान और धर्म रक्षा हेतू 31 वर्ष की आयु में अपनी इहलीला समाप्त कर थी अमरसिंह राठौड़ ने ।

निःसंदेह अमरसिंह राठौड़ एक महान स्वाभिमानी ओर कुशल शासक थे । यद्यपि उन्होंने वीरगति प्राप्त की हो किन्तु उनका जीवन और वीरता एवं अपनी बात पर अडिग रहने का कौशल आज 400 वर्षो के बाद भी जन-जन को प्रेरणादायक ओर रोमांचित कर देता है ।

अमरसिंह राठौड़ गेट, आगरा किला
अमरसिंह राठौड़ गेट , आगरा किला

FAQ’s

अमरसिंह राठौड़ की मृत्य कैसे हुई थी?

आगरा के दरबार मे जब सलावत खां ने अमरसिंह राठौड़ को अपमानित करना चाहा था, तब सलावत खां का सर काटने से आगरे की किले में मचे उपद्रव में युद्ध के समय अत्यधिक घायल होने की वजह से अमरसिंह राठौड़ की मृत्यु हुई थी ।

अमरसिंह राठौड़ गेट कहाँ स्थित है?

जब अमरसिंह जी की मृत्यु हो गई थी तब राजपूत सेना और बल्लू चम्पावत ने आगरा किले में घुसकर उनके शव को उठा लाये थे । जिस गेट से सेना किले में घुसी थी उसको अमरसिंह राठौड़ गेट के नाम से जाना जाता है ।

अमरसिंह राठौड़ का जन्म कब हुवा था?

12 दिसंबर 1626 को जोधपुर के राजा गजसिंह जी के यहाँ अमरसिंह राठौड़ का जन्म हुवा था । वह गजसिंह जी के बड़े बेटे थे ।

Amar Singh Rathore के भाई का नाम क्या था?

अमर सिंह राठौड़ के भाई का नाम जसवंत सिंह जी था । वही जोधपुर की राजगद्दी पर बैठे थे ।

निष्कर्ष : अमरसिंह राठौड़ का जीवन चरित्र

आशा है आपको इस लेख अमरसिंह राठौड़ के इतिहास और जीवन चरित्र से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा । आपको हमारी इस वेबसाइट Karni Times पर बहुत सी ऐतिहासिक जानकारी समय-समय पर उपलब्ध करवाई जाएगी । इसलिए आप इस लेख को जरूर साझा करें ।

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NOTE : अमरसिंह राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय बहुत विशाल है हमने यहाँ पर कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने वीर महापुरुषों के विषय मे जान सके ।

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Vijay Singh Chawandia

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