बप्पा रावल का इतिहास | Bappa Rawal Biography |जिनके भय से 400 वर्षो तक विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत आने की हिम्मत नही दिखाई

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बप्पा रावल। भारत के इतिहास में ऐसे सैकड़ो योद्धा हुवे है, जिन्होंने अपनी तलवार के दम पर दुश्मनो को हार का मुँह दिखाया था। जब-जब भारत के इतिहास को पढ़ा जायेगा तब-तब राजस्थान और मेवाड़ का नाम अग्रणी होगा। आज हम इस लेख में आपको मेवाड़ के बप्पा रावल की शौर्यगाथा को सुनाने जा रहे है। आशा हे आपको पसंद आएगी। 

बप्पा रावल का जन्म – Bappa Rawal 

मेवाड़ राजघराने के आदिपुरुष बप्पा जी रावल का जन्म 713-14 ई. में हुवा था। बप्पा रावल को “कालभोज” के नाम से भी जाना जाता है, इनके समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था। 734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार किया।

वैसे तो गुहिलादित्य/गुहिल को गुहिल वंश का संस्थापक कहते हैं, पर गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को माना जाता है, पंथ प्रवर्तक बप्पा रावल जिन पुण्य नामों के स्मरण मात्र से रक्त में ज्वार आ जाता है, सिर जिनकी स्मृति में श्रद्धा से झुक जाता है, ऐसे अनेक प्रातः स्मरणीय नामों में से एक नाम है बप्पा रावल !

बप्पा रावल का इतिहास

बप्पा रावल का इतिहास – Bappa Rawal biography

बप्पा रावल एक न्यायप्रिय शासक थे। वे राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे। लगभग 20 वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने वैराग्य ले लिया और अपने पुत्र को राज्य देकर शिव की उपासना में लग गये।

महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा), उदय सिंह और महाराणा प्रताप जैसे श्रेष्ठ और वीर शासक उनके ही वंश में उत्पन्न हुए थे। उन्होंने अरब की हमलावर सेनाओं को कई बार ऐसी करारी हार दी कि अगले 400 वर्षों तक किसी भी मुस्लिम शासक की हिम्मत भारत की ओर आंख उठाकर देखने की नहीं हुई। बहुत बाद में महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत की थी और कई बार पराजित हुआ था।

मेवाड़ राज्य के संस्थापक व वीर योद्धा Bappa Rawal की महानता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान का प्रमुख शहर रावलपिंडी उनके ही नाम पर बना था। विदेशी आक्रमणकारियों को नाकों चने चबवाने वाले वीर Bappa Rawal का सैन्य ठिकाने वहां होने के कारण रावलपिंडी को यह नाम मिला।

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वीर योद्धा बप्पा रावल

आठवीं सदी में मेवाड़ की स्थापना करने वाले बप्पा भारतीय सीमाओं से बाहर ही विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार करना चाहते थे। बप्पा ने सिंध तक आक्रमण कर अरब सेनाओं को खदेड़ा था। कई इतिहासकार इस बात को निर्विवाद स्वीकार करते हैं कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ था।

बप्पा रावल का इतिहास | History of Bappa Rawal in Hindi

इससे पहले तक रावलपिंडी को गजनी प्रदेश कहा जाता था। तब कराची का नाम भी ब्रह्माणावाद था। इतिहासकार बताते हैं गजनी प्रदेश में बप्पा ने सैन्य ठिकाना स्थापित किया था। वहां से उनके सैनिक अरब सेना की गतिविधियों पर नजर रखते थे।

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उनकी वीरता से प्रभावित गजनी के सुल्तान ने अपनी पुत्री का विवाह भी उनसे किया था। मेवाड़ में बप्पा व दूसरे प्रदेशों में इस वीर शासक को बापा भी पुकारा जाता था। अबुल फजल ने मेवाड़ राजवंश को नौशेरवा की उपाधि प्रदान की थी।

बप्पा रावल और नागभट्ट प्रतिहार का सयुंक्त मोर्चा :

यह अनुमान है कि बप्पा रावल की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। Bappa Rawal ने मुहम्मद बिन क़ासिम से सिंधु को जीता। अरबों ने उसके बाद चारों ओर धावे करने शुरू किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लोंश् और गुर्जरों को हराया। मारवाड़, मालवा, मेवाड़, गुजरात आदि सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं।

राजस्थान के कुछ महान् व्यक्ति जिनमें विशेष रूप से प्रतिहार सम्राट् नागभट्ट प्रथम और Bappa Rawal के नाम उल्लेख्य हैं। नागभट्ट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवा से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मौर्य करने में असमर्थ थे, और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बप्पा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक कथाएं इतिहास में हे। Bappa Rawal ने मुगल लुटेरों को इस कदर हराय था की 400 सालों तक मुगलो की हिम्मत नहीं हुई थी भारत पर दुबारा आक्रमण करने की।

बप्पा रावल  के कराची तक जाने और अरब सेनाओं को खदडऩे का जिक्र मिलता है। इस बात को पूरी तरह स्वीकार किया जा सकता है कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ। यहां बप्पा का सैन्य ठिकाना था। बप्पा बहुत ही शक्तिशाली शासक थे। बप्पा का लालन-पालन ब्राह्मण परिवार के सान्निध्य में हुआ। उन्होंने अफगानिस्तान व पाकिस्तान तक अरबों को खदेड़ा था। बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण ही पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा।

बप्पा रावल की मृत्यु

समस्त विश्व में अपनी वीरता की छाप छोड़ने वाले महान योद्धा कालभोज का देहावसान नागदा में हुवा था, वही उनका समाधी स्थल भी बना हुवा है। आज वह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

बप्पा रावल से जुड़े रोचक तथ्य

  1. Bappa Rawal को मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  2. बप्पा जी रावल ने चित्तौड़ में मौर्य साम्राज्य को ध्वस्त करके गुहिल वंश की नीव रखी थी।
  3. प्रचलित कथाओं के हिसाब से उनमे इतना बल था की वह एकसाथ दो भैंसों की बलि एक ही झटके में दे देते थे।
  4. मेवाड़ राजवंश के आराध्य श्री एकलिंगजी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण बप्पा रावल जी ने 734 ई. में करवाया था।
  5. Bappa Rawal जी ने सम्पूर्ण भारत में अपना विजय रथ चलाया था, बप्पा जी की सेना में 12 लाख से अधिक सैनिक थे। इनकी करीब 100 पत्नियां थी, जिनमे 35 से अधिक तो मुस्लिम औरते थी।
  6. वर्तमान पाकिस्तान के प्रसिद्ध शहर रावलपिण्डी का नाम बप्पा रावल के नाम पर ही रखा गया था।

FAQ’s

बप्पा रावल के पिता कौन थे?

मेवाड़ राजघराने के संस्थापक बप्पा रावल के पिता का नाम नागादित्य था।

मेवाड़ में गुहिल वंश के संस्थापक कौन थे?

मेवाड़ में प्रसिद्ध गुहिल वंश की स्थापना गुहिल राजा गुहादित्य ने 566 ई० में की थी, किन्तु मेवाड़ के राजवंश का वास्तविक सस्थापक बप्पा रावल को माना जाता है, क्योंकि 727 ई० में राजगद्दी पर बैठने के बाद इन्होने मेवाड़ साम्राज्य को पुरे भारत में फैला दिया था, और दूर हिन्दुकुश तक अपने शौर्य की कीर्ति पहुँचा दी थी।

Bappa Rawal का जन्म और मृत्यु कब हुई थी?

कालभोज बप्पा रावल का जन्म 713-14 ई. में हुवा था, इन्होंने ही मेवाड़ के वर्तमान गुहिल वंश को वास्तविक रूप से पहचान दी थी। 97 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु नागदा में हुई थी। वर्तमान में वही उनका स्मारक बना हुवा है।

बप्पा रावल की तलवार कितने किलो की थी?

ऐसी कोई पुख्ता जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु दन्त कथाओं और मेवाड़ के प्राचीन दस्तावेजों की माने तो Bappa Rawal की तलवार का वजन करीब 32 किलों बताया जाता है।

बप्पा रावल की कितनी रानियाँ थी?

इतिहास में दर्ज तथ्यों के हिसाब से बप्पा रावल की 100 से अधिक रानियां थी, जिनमे 35 से अधिक तो मुस्लिम शहजादियाँ थी। जो उनके भय और कौशल को देखकर मुलिम शासकों ने उनके साथ भेज दी थी।

निष्कर्ष : बप्पा रावल Bappa Rawal History in Hindi

मित्रों इस लेख में हमने मेवाड़ के गुहिल वंश के वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल का इतिहास ( Bappa Rawal History in Hindi ) पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख किया है, आशा हे आप सबको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। हम समय-समय से इस वेबसाइट Rajput Voice पर क्षत्रिय इतिहास से जुडी जानकारियों को साझा करते रहते है। अतः आप सभी अपना सहयोग बनाये रखे और यह लेख अपने सभी मित्रों के साथ Share जरूर करे।

4 thoughts on “बप्पा रावल का इतिहास | Bappa Rawal Biography |जिनके भय से 400 वर्षो तक विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत आने की हिम्मत नही दिखाई”

  1. बहुत ही सराहनीय जानकारी देने के लिए आभार

  2. महेश खटीक

    गुहिलादित्य/गुहिल/गुहादित्य गुहिल वंश के संस्थापक थे, बाप्पा रावल तो उनके वंशज थे और निश्चय ही मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ही थे, जिनके नाम से रावलपिंडी शहर का नाम करण हुआ।

  3. सृजन सागर

    इतनी अच्छी जानकारी क लिए ह्रदय से आभार

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