सिसोसिया वंश का इतिहास । सनातन भारत मे क्षत्रियों का वास प्राचीन वैदिक काल से रहा है । सबसे अधिक राजपूत क्षत्रियों का वर्चस्व राजस्थान में रहा है । यहाँ सैकड़ो राजपूत क्षत्रिय जातियों का शासन रहा है । इनमें से ही एक है सिसोदिया वंश कालान्तर में गुहिल वंश के नाम से जाना जाता था, जो वर्तमान में सिसोसिया नाम से प्रसिद्ध हुवा । भारत में प्राचीन राजवंशो में माना जाता है, मेवाड़ का सिसोदिया राजपूत वंश। मेवाड़ के विश्व प्रसिद्ध राजवंश का परिचय आज हम आपको देने जा रहे है । आशा है जानकारी पसन्द आएगी :-
सिसोदिया वंश का इतिहास – Sisodiya Vansh History in Hindi
मेवाड़ के इस राजवंश की नींव तो करीब 556 ई. में ही रख दी गई थी । जो इतिहास में पहले इसे गुहिल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुवा था, और वही कालान्तर में आगे जाकर सिसोसिया वंश के रूप में जाना गया । गुहिल वंश में कई शूरमा महारथी योद्धा हुवे है, जैसे बप्पा रावल , महाराणा प्रताप, राणा सांगा, राणा कुम्भा आदि । जिन्होंने अपनी तलवारों के दम पर अपनी मातृभूमि की रक्षा की थी, और इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया था ।

सिसोदिया वंश का परिचय – Sisodiya Rajput Vansh
जैसा कि हमने ऊपर बताया था कि 556 ई. में की नींव डाली जा चुकी थी । इसके लगभग 150 वर्षों बाद 712 ई. में भारत पर अरबी लुटेरों के आक्रमण में तेजी आज चुकी थी । उस समय भारत में कोई भी शशक्त शासक का केंद्रीय शासन नही था । सभी छोटी-छोटी रियासतों में बटे हुवे थे, इस कारण अरबों ने सन. 725 ई. में उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों पर अधिकार जमा लिया था ।
उस वक्त भारत मे दो बड़ी शक्तिशाली ताकतों का उदय हुवा । जहाँ एक तरफ नागभट्ट ने जैसलमेर और मांडलगढ़ से अरबों को खदेड़ कर करके जालौर में प्रतिहार क्षत्रिय वंश के शक्तिशाली राज्य की नींव डाली, तो दूसरी तरफ सन. 734 ई. में मेवाड़ के शासक मान मोरी को परास्त करके बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था । वही से वर्तमान सिसोदिया वंश की असली नीव पड़ चुकी थी ।
बप्पा रावल इतने शक्तिशाली योद्धा थे कि उन्होंने अरबों को काबुल तक खदेड़ दिया, और वापस लौटते समय पर बीच बीच मे सैनिक चौकिया स्थापित कर दी ताकि कोई लुटेरा वापस आक्रमण ना कर सके । इतिहास में मौजूद तथ्यों के हिसाब से बप्पा रावल की इस दूरदर्शी नीति के कारण उसके 400 वर्षो बाद तक कोई अरब आक्रमण नही हुवे थे ।
मेवाड़ के गुहिल वंश ( सिसोदिया वंश ) के शासक और शासनकाल
क्रमांक | नाम | शासनकाल |
---|---|---|
1 | बप्पा रावल | 734 से 753 ई. तक |
2 | रावल खुमान | 753 से 773 ई. तक |
3 | मत्तट | 773 से 793 ई. तक |
4 | भर्तभट्त | 793 से 813 ई. तक |
5 | रावल सिंह | 813 से 828 ई. तक |
6 | खुमाण सिंह | 828 से 853 ई. तक |
7 | महायक | 853 से 878 ई. तक |
8 | खुमाण तृतीय | 878 से 903 ई. तक |
9 | भर्तभट्ट द्वितीय | 903 से 951 ई. तक |
10 | अल्लट | 951 से 971 ई. तक |
11 | नरवाहन | 971 से 973 ई. तक |
12 | शालिवाहन | 973 से 977 ई. तक |
13 | शक्ति कुमार | 977 से 993 ई. तक |
14 | अम्बा प्रसाद | 993 से 1007 ई. तक |
15 | शुची | 1007 से 1021 ई. तक |
16 | नर | 1021 से 1035 ई. तक |
17 | कीर्ति | 1035 से 1051 ई. तक |
18 | योगराज | 1051 से 1068 ई. तक |
19 | वैरठ | 1068 से 1088 ई. तक |
20 | हंस पाल | 1088 से 1103 ई. तक |
21 | वैरी सिंह | 1103 से 1107 ई. तक |
22 | विजय सिंह | 1107 से 1127 ई. तक |
23 | अरि सिंह | 1127 से 1138 ई. तक |
24 | चौड सिंह | 1138 से 1148 ई. तक |
25 | विक्रम सिंह | 1148 से 1158 ई. तक |
26 | रण सिंह (कर्ण सिंह) | 1158 से 1168 ई. तक |
27 | क्षेम सिंह | 1168 से 1172 ई. तक |
28 | सामंत सिंह | 1172 से 1179 ई. तक |
29 | रतन सिंह | 1301 से 1303 ई. तक |
30 | राजा अजय सिंह | 1303 से 1326 ई. तक |
31 | राणा हमीर सिंह | 1326 से 1364 ई. तक |
32 | राणा क्षेत्र सिंह | 1364 से 1382 ई. तक |
33 | राणा लाखासिंह | 1382 से 1421 ई. तक |
34 | राणा मोकल | 1421 से 1433 ई. तक |
35 | राणा कुम्भा | 1433 से 1469 ई. तक |
36 | राणा उदा सिंह | 1468 से 1473 ई. तक |
37 | राणा रायमल | 1473 से 1509 ई. तक |
38 | राणा सांगा ( संग्राम सिंह ) | 1509 से 1527 ई. तक |
39 | राणा रतन सिंह | 1528 से 1531 ई. तक |
40 | राणा विक्रमादित्य | 1531 से 1534 ई. तक |
41 | राणा उदयसिंह | 1537 से 1572 ई. तक |
42 | महाराणा प्रताप | 1572 से 1597 ई. तक |
43 | राणा अमरसिंह | 1597 से 1620 ई. तक |
44 | राणा कर्णसिंह | 1620 से 1628 ई. तक |
45 | राणा जगतसिंह | 1628 से 1652 ई. तक |
46 | राणा राजसिंह | 1652 से 1680 ई. तक |
47 | राणा अमरसिंह द्वितीय | 1698 से 1710 ई. तक |
48 | राणा संग्रामसिंह द्वितीय | 1710 से 1734 ई. तक |
49 | राणा जगतसिंह द्वितीय | 1734 से 1751 ई. तक |
50 | राणा प्रतापसिंह द्वितीय | 1751 से 1754 ई. तक |
51 | राणा राजसिंह द्वितीय | 1754 से 1761 ई. तक |
52 | राणा हमीरसिंह द्वितीय | 1773 से 1778 ई. तक |
53 | राणा भीमसिंह | 1778 से 1828 ई. तक |
54 | राणा जवानसिंह | 1828 से 1838 ई. तक |
55 | राणा सरदारसिंह | 1838 से 1842 ई. तक |
56 | राणा स्वरूपसिंह | 1842 से 1861 ई. तक |
57 | राणा शंभूसिंह | 1861 से 1874 ई. तक |
58 | राणा सज्जनसिंह | 1874 से 1884 ई. तक |
59 | राणा फ़तेहसिंह | 1883 से 1930 ई. तक |
60 | राणा भूपालसिंह | 1930 से 1955 ई. तक |
61 | राणा भगवतसिंह | 1955 से 1984 ई. तक |
62 | राणा महेन्द्रसिंह | 1984 ई. से वर्तमान |

सिसोदिया वंश ( गुहिल ) के गौत्र प्रवरादि
- वंश – सूर्यवंश ( गुहिल, सिसोदिया, गहलोत )
- गौत्र – वैजवापायन
- वेद – यजुर्वेद
- प्रवर – कच्छ, भुज और मेष
- कुलगुरु – द्लोचन ( वशिष्ठ )
- ऋषि – हरित
- शाखा – वाजसनेयी
- कुलदेवता – श्री सूर्य नारायण
- ईष्ट देवता – श्री एकलिंगजी
- कुलदेवी – बायण माता ( बाण माता )
- झंडा – सूर्य युक्त
- नदी – सरयू
- वृक्ष – खेजड़ी
- भाट – बागड़ेचा
- पुरोहित – पालीवाल
- ढोल – मेगजीत
- चारण – सोदा बारहठ
- बंदूक – सिंघल
- तलवार – अश्वपाल
- पक्षी – नील कंठ
- नगाड़ा – बेरिसाल
- निर्वाण – रणजीत
- निशान – पचरंगा
- तालाब – भोडाला
- घोड़ा – श्याम कर्ण
- घाट – सोरम
- विरद – चुण्डावत, सारंगदेवोत
- ठिकाना – भिंडर
- शाखाएं – 24
- चिन्ह – सूर्य
सिसोदिया वंश ( गुहिल ) की प्रमुख शाखाएं
क्षत्रिय इतिहास में सभी राजवंशो की तरह सिसोदिया वंश में भी समय-समय पर सत्ता परिवर्तन हुवे, और शासक साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत कई दूसरे स्थानों पर भी गए और वही बस गए । इस कारण अलग-अलग स्थान और परिवार के विस्तार से राजाओं और उनके स्थान के नाम से कई शाखाएँ और उपशाखाएँ उत्पन्न हुई, सिसोदिया राजपूत वंश की मुख्य शाखाएँ इस प्रकार है :-
- गुहिलौत
- सिसोदिया
- माँगल्या
- पीपाड़ा
- अजबरया
- मगरोपा
- कुम्पा
- केलवा
- घोरण्या
- भीमल
- गोधा
- हुल
- नंदोत
- अहाड़ा
- आशायत
- सोवा
- करा
- बोढ़ा
- मुदौत
- कोढ़ा
- भटवेरा
- कवेड़ा
- कुछेल
- दुसंध्या
- धरलया

सिसोदिया वंश की उपशाखाएं
सिसोदिया वंश में कई उपशाखाएं भी ज्ञात होती है, जो प्रसिद्ध हुई, जैसे : प्रथम चंद्रावत सिसोदिया यह शाखा करीब 1275 ई. में समय अस्तिव में आई थी, जो चंद्रा शासक के नाम पर इस शाखा को चंद्रावत नाम मिला । द्वितीय शाखा भोंसला सिसोदिया के नाम से प्रसिद्ध हुई थी, जो राणा सज्जन सिंह जी ने सतारा नामक स्थान पर रखी थी । वही तीसरी प्रमुख उपशाखा चूडावत सिसोदिया के नाम से विख्यात हुई जो राव चूड़ा के नाम पर चली थी, चूडावतो की भी 30 शाखाएं प्रचलन में है ।
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सिसोदिया वंश के विषय मे मान्यतायें
ज्ञात तथ्यों और इतिहासकारों की खोज से पता चलता है और मान्यता है कि सिसोदिया वंश सूर्यवंशी भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज है । भगवान राम सूर्यवंश की 65 वी पीढ़ी थे, और इसी वंश की 125 वी पीढ़ी में राजा सुमित्र हुवे थे । आगे चलकर 155 वी पीढ़ी में गुहिल हुवे थे । गुहिल ही वर्तमान गुहिलौत या गुहिल वंश के संस्थापक कहलाते है ।
भगवान राम के पुत्र लव को जब शासन में भारत का उत्तरी-पश्चिमी राज्य मिला था, तो उन्होंने अपनी राजधानी लवकोट ( वर्तमान – लाहौर, पाकिस्तान ) में अपना शासन प्रारम्भ किया था । इसी में आगे चलकर कनकसेन लवकोट से द्वारका आये थे । वही से उन्होंने परमार राजा को परास्त करके अपना राज्य स्थापित किया था, वर्तमान में उस स्थान को सौराष्ट्र के नाम से जाना जाता है ।
इतिहास में ज्ञात तथ्यों के हिसाब से इसी पीढ़ी में आगे चलकर राजा विजयसेन हुवे थे, जिन्होंने ही विजय नगर को बसाया था । कालान्तर में जब सत्ता का विस्थापन हुवा तो वह ईडर में स्थापित हुवे । जब ईडर से गुहिल मेवाड़ की और स्थपित हुवे थे तब रावल उपाधि धारण की थी, उसी में बप्पा रावल प्रमुख शासक थे ।
गुहिल वंश में दो प्रमुख उपाधियां चलन में थी, रावल और राणा । राजपरम्परा के अनुसार जेष्ठ को रावल और कनिष्ठ को राणा उपाधि दी जाती थी । जब रावल रतन सिंह और खिलजी का युद्ध हुवा था, उसमे राजपूतों को छल से परास्त कर दिया गया था, और वही से रावल शाखा का अंत हो गया था । उसके बाद चित्तौड़ पर सिसोसिया राणा शाखा का अधिपत्य स्थापित हो गया था ।
FAQ’s
सिसोदिया वंश की कुलदेवी का क्या नाम है?
सिसोदिया वंश, गुहिल, गुहिलोत वंश की कुलदेवी का नाम बाण माता ( बाणेश्वरी ) है। इनका पाठ स्थान चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
सिसोदिया वंश का पहला शासक कौन था?
556 ई. में गुहिलादित्य ने सिसोदिया वंश की नींव रखी थी, और उन्हीं के नाम पर इस वंश का गुहिल पड़ा था। किन्तु सिसोदिया वंश का पहला शासक बप्पा रावल को ही माना जाता है, क्योकि उन्ही ने वास्तविक रूप से गुहिल वंश ( सिसोदिया वंश ) को समस्त विश्व में एक पहचान दी थी।
मेवाड़ और नेपाल के राजपरिवार में क्या सम्बन्ध है?
मेवाड़ के शासक रतनसिंह जी के भाई कुम्भकरण जी ने नेपाल पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था, और वही पर अपना शासन शुरू किया, अतः मेवाड़ और नेपाल के राजपरिवार एक ही गुहिल वंश की दो शाखाएं है।
चित्तौड़ में कितने शाका हुए?
चित्तोड़ में कुल तीन शाका हुवे थे, प्रथम रावल रतनसिंह जी के समय और द्वितीय शाका राणा विक्रमादित्य के समय और आखिरी तीसरा शाका सं 1567 में तत्कालीन राणा उदयसिंह जी के समय हुवा था।
सिसोदिया वंश की कितनी शाखाएं है?
समय-समय के अनुसार स्थान परिवर्तन और वंश वृद्धि के साथ ही सिसोदिया वंश में कई शाखाएं उत्पन्न हुई, इनमे से मुख्य रूप से 24 शाखाएं अभी ज्ञात है।
निष्कर्ष : सिसोदिया वंश – Sisodiya Vansh
पाठकों हमने इस लेख में सिसोदिया वंश का इतिहास और शाखाएं पर प्रकाश डाला है, आशा आपको यह लेख पसंद आया होगा। अगर आप हमारे निरंतर पाठक है तो आपको ज्ञात होगा की Rajput Voice पर हम राजपूत इतिहास और वंश के विषय में समय-समय पर जानकारी प्रदर्शित करते रहते है, अतः आप हमारी वेबसाइट को Follow जरूर करे।
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बहुत अच्छी जानकारी दी है साब अपने
सिसोदिया वंश आपका बहुत आभार प्रकट करता है।
जय माता दी
जय भवानी
जय मां बनेश्चरी
Thanks bro for this information
सिसोदिया वंश की बहुत सारी जानकारी दी आपका बहुत बहुत आभार
जय माँ बनेश्वरी
Jai माँ भवानी
Nice
राठौर साहब,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने सिसोदिया वंश के बारे में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी दी.
Thank u sir
बहुत ही विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आप आगे भी इशी तरह राजपूतो को अपने इतिहास से अबगत कराते रहेंगे धन्यबाद जी जय भवानी जय माँ बाणेश्वरी
Very nice information about sisodiya.thanks for giving information.
Mewad ke rana katira ke bare me jankari dene ka kasht kare.
Great👍 thank you sir
Jai baan mata
Thank you, for your information 🙏🏻
We are Sawant’s from Maharashtra. I came to know through one source, that we are basically Sisodiya’s from Rajasthan. When we travels to Maharashtra, we change our surname from Sisodiya to Sawant.
Is this true. Any information
Please let me know.
मेरी एक मित्र जो सिसोदिया लगाती है नाम के आगे
वो अपनी कुलदेवी “अस्वरी” माता बता रही है
ये कोई कुल या शाखा है ?
या वो कोई और वंश की है?
जय माताजी राठौर साहब सिसोदिया के इतिहास की गहन जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद