सिसोदिया वंश का इतिहास ( गुहिल ) | Sisodiya Rajput History in Hindi |

By Vijay Singh Chawandia

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सिसोसिया वंश का इतिहास । सनातन भारत मे क्षत्रियों का वास प्राचीन वैदिक काल से रहा है । सबसे अधिक राजपूत क्षत्रियों का वर्चस्व राजस्थान में रहा है । यहाँ सैकड़ो राजपूत क्षत्रिय जातियों का शासन रहा है । इनमें से ही एक है सिसोदिया वंश कालान्तर में गुहिल वंश के नाम से जाना जाता था, जो वर्तमान में सिसोसिया नाम से प्रसिद्ध हुवा । भारत में प्राचीन राजवंशो में माना जाता है, मेवाड़ का सिसोदिया राजपूत वंश। मेवाड़ के विश्व प्रसिद्ध राजवंश का परिचय आज हम आपको देने जा रहे है । आशा है जानकारी पसन्द आएगी :-

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सिसोदिया वंश का इतिहास – Sisodiya Vansh History in Hindi

मेवाड़ के इस राजवंश की नींव तो करीब 556 ई. में ही रख दी गई थी । जो इतिहास में पहले इसे गुहिल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुवा था, और वही कालान्तर में आगे जाकर सिसोसिया वंश के रूप में जाना गया । गुहिल वंश में कई शूरमा महारथी योद्धा हुवे है, जैसे बप्पा रावल , महाराणा प्रताप, राणा सांगा, राणा कुम्भा आदि । जिन्होंने अपनी तलवारों के दम पर अपनी मातृभूमि की रक्षा की थी, और इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया था ।

सिसोदिया वंश  logo
सिसोदिया वंश

सिसोदिया वंश का परिचय – Sisodiya Rajput Vansh

जैसा कि हमने ऊपर बताया था कि 556 ई. में की नींव डाली जा चुकी थी । इसके लगभग 150 वर्षों बाद 712 ई. में भारत पर अरबी लुटेरों के आक्रमण में तेजी आज चुकी थी । उस समय भारत में कोई भी शशक्त शासक का केंद्रीय शासन नही था । सभी छोटी-छोटी रियासतों में बटे हुवे थे, इस कारण अरबों ने सन. 725 ई. में उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों पर अधिकार जमा लिया था ।

उस वक्त भारत मे दो बड़ी शक्तिशाली ताकतों का उदय हुवा । जहाँ एक तरफ नागभट्ट ने जैसलमेर और मांडलगढ़ से अरबों को खदेड़ कर करके जालौर में प्रतिहार क्षत्रिय वंश के शक्तिशाली राज्य की नींव डाली, तो दूसरी तरफ सन. 734 ई. में मेवाड़ के शासक मान मोरी को परास्त करके बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था । वही से वर्तमान सिसोदिया वंश की असली नीव पड़ चुकी थी ।

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बप्पा रावल इतने शक्तिशाली योद्धा थे कि उन्होंने अरबों को काबुल तक खदेड़ दिया, और वापस लौटते समय पर बीच बीच मे सैनिक चौकिया स्थापित कर दी ताकि कोई लुटेरा वापस आक्रमण ना कर सके । इतिहास में मौजूद तथ्यों के हिसाब से बप्पा रावल की इस दूरदर्शी नीति के कारण उसके 400 वर्षो बाद तक कोई अरब आक्रमण नही हुवे थे ।

मेवाड़ के गुहिल वंश ( सिसोदिया वंश ) के शासक और शासनकाल

क्रमांकनामशासनकाल
1बप्पा रावल 734 से 753 ई. तक
2रावल खुमान753 से 773 ई. तक
3मत्तट773 से 793 ई. तक
4भर्तभट्त793 से 813 ई. तक
5रावल सिंह813 से 828 ई. तक
6खुमाण सिंह828 से 853 ई. तक
7महायक853 से 878 ई. तक
8खुमाण तृतीय878 से 903 ई. तक
9भर्तभट्ट द्वितीय903 से 951 ई. तक
10अल्लट951 से 971 ई. तक
11नरवाहन971 से 973 ई. तक
12शालिवाहन973 से 977 ई. तक
13शक्ति कुमार977 से 993 ई. तक
14अम्बा प्रसाद993 से 1007 ई. तक
15शुची1007 से 1021 ई. तक
16नर1021 से 1035 ई. तक
17कीर्ति1035 से 1051 ई. तक
18योगराज1051 से 1068 ई. तक
19वैरठ1068 से 1088 ई. तक
20हंस पाल1088 से 1103 ई. तक
21वैरी सिंह1103 से 1107 ई. तक
22विजय सिंह1107 से 1127 ई. तक
23अरि सिंह1127 से 1138 ई. तक
24चौड सिंह1138 से 1148 ई. तक
25विक्रम सिंह1148 से 1158 ई. तक
26रण सिंह (कर्ण सिंह)1158 से 1168 ई. तक
27क्षेम सिंह1168 से 1172 ई. तक
28सामंत सिंह1172 से 1179 ई. तक
29रतन सिंह1301 से 1303 ई. तक
30राजा अजय सिंह1303 से 1326 ई. तक
31राणा हमीर सिंह1326 से 1364 ई. तक
32राणा क्षेत्र सिंह1364 से 1382 ई. तक
33राणा लाखासिंह1382 से 1421 ई. तक
34राणा मोकल1421 से 1433 ई. तक
35राणा कुम्भा1433 से 1469 ई. तक
36राणा उदा सिंह1468 से 1473 ई. तक
37राणा रायमल1473 से 1509 ई. तक
38राणा सांगा ( संग्राम सिंह )1509 से 1527 ई. तक
39राणा रतन सिंह1528 से 1531 ई. तक
40राणा विक्रमादित्य1531 से 1534 ई. तक
41राणा उदयसिंह1537 से 1572 ई. तक
42महाराणा प्रताप 1572 से 1597 ई. तक
43राणा अमरसिंह1597 से 1620 ई. तक
44राणा कर्णसिंह1620 से 1628 ई. तक
45राणा जगतसिंह1628 से 1652 ई. तक
46राणा राजसिंह1652 से 1680 ई. तक
47राणा अमरसिंह द्वितीय1698 से 1710 ई. तक
48राणा संग्रामसिंह द्वितीय1710 से 1734 ई. तक
49राणा जगतसिंह द्वितीय1734 से 1751 ई. तक
50राणा प्रतापसिंह द्वितीय1751 से 1754 ई. तक
51राणा राजसिंह द्वितीय1754 से 1761 ई. तक
52राणा हमीरसिंह द्वितीय1773 से 1778 ई. तक
53राणा भीमसिंह1778 से 1828 ई. तक
54राणा जवानसिंह1828 से 1838 ई. तक
55राणा सरदारसिंह1838 से 1842 ई. तक
56राणा स्वरूपसिंह1842 से 1861 ई. तक
57राणा शंभूसिंह1861 से 1874 ई. तक
58राणा सज्जनसिंह1874 से 1884 ई. तक
59राणा फ़तेहसिंह1883 से 1930 ई. तक
60राणा भूपालसिंह1930 से 1955 ई. तक
61राणा भगवतसिंह1955 से 1984 ई. तक
62राणा महेन्द्रसिंह1984 ई. से वर्तमान
महाराणा प्रताप की मूर्ति

सिसोदिया वंश ( गुहिल ) के गौत्र प्रवरादि

  • वंश – सूर्यवंश ( गुहिल, सिसोदिया, गहलोत )
  • गौत्र – वैजवापायन
  • वेद – यजुर्वेद
  • प्रवर – कच्छ, भुज और मेष
  • कुलगुरु – द्लोचन ( वशिष्ठ )
  • ऋषि – हरित
  • शाखा – वाजसनेयी
  • कुलदेवता – श्री सूर्य नारायण
  • ईष्ट देवता – श्री एकलिंगजी
  • कुलदेवी – बायण माता ( बाण माता )
  • झंडा – सूर्य युक्त
  • नदी – सरयू
  • वृक्ष – खेजड़ी
  • भाट – बागड़ेचा
  • पुरोहित – पालीवाल
  • ढोल – मेगजीत
  • चारण – सोदा बारहठ
  • बंदूक – सिंघल
  • तलवार – अश्वपाल
  • पक्षी – नील कंठ
  • नगाड़ा – बेरिसाल
  • निर्वाण – रणजीत
  • निशान – पचरंगा
  • तालाब – भोडाला
  • घोड़ा – श्याम कर्ण
  • घाट – सोरम
  • विरद – चुण्डावत, सारंगदेवोत
  • ठिकाना – भिंडर
  • शाखाएं – 24
  • चिन्ह – सूर्य

सिसोदिया वंश ( गुहिल ) की प्रमुख शाखाएं

क्षत्रिय इतिहास में सभी राजवंशो की तरह सिसोदिया वंश में भी समय-समय पर सत्ता परिवर्तन हुवे, और शासक साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत कई दूसरे स्थानों पर भी गए और वही बस गए । इस कारण अलग-अलग स्थान और परिवार के विस्तार से राजाओं और उनके स्थान के नाम से कई शाखाएँ और उपशाखाएँ उत्पन्न हुई, सिसोदिया राजपूत वंश की मुख्य शाखाएँ इस प्रकार है :-

  1. गुहिलौत
  2. सिसोदिया
  3. माँगल्या
  4. पीपाड़ा
  5. अजबरया
  6. मगरोपा
  7. कुम्पा
  8. केलवा
  9. घोरण्या
  10. भीमल
  11. गोधा
  12. हुल
  13. नंदोत
  14. अहाड़ा
  15. आशायत
  16. सोवा
  17. करा
  18. बोढ़ा
  19. मुदौत
  20. कोढ़ा
  21. भटवेरा
  22. कवेड़ा
  23. कुछेल
  24. दुसंध्या
  25. धरलया
बप्पा रावल | सिसोदिया वंश के संस्थापक

सिसोदिया वंश की उपशाखाएं

सिसोदिया वंश में कई उपशाखाएं भी ज्ञात होती है, जो प्रसिद्ध हुई, जैसे : प्रथम चंद्रावत सिसोदिया यह शाखा करीब 1275 ई. में समय अस्तिव में आई थी, जो चंद्रा शासक के नाम पर इस शाखा को चंद्रावत नाम मिला । द्वितीय शाखा भोंसला सिसोदिया के नाम से प्रसिद्ध हुई थी, जो राणा सज्जन सिंह जी ने सतारा नामक स्थान पर रखी थी । वही तीसरी प्रमुख उपशाखा चूडावत सिसोदिया के नाम से विख्यात हुई जो राव चूड़ा के नाम पर चली थी, चूडावतो की भी 30 शाखाएं प्रचलन में है ।

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सिसोदिया वंश के विषय मे मान्यतायें

ज्ञात तथ्यों और इतिहासकारों की खोज से पता चलता है और मान्यता है कि सिसोदिया वंश सूर्यवंशी भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज है । भगवान राम सूर्यवंश की 65 वी पीढ़ी थे, और इसी वंश की 125 वी पीढ़ी में राजा सुमित्र हुवे थे । आगे चलकर 155 वी पीढ़ी में गुहिल हुवे थे । गुहिल ही वर्तमान गुहिलौत या गुहिल वंश के संस्थापक कहलाते है ।

भगवान राम के पुत्र लव को जब शासन में भारत का उत्तरी-पश्चिमी राज्य मिला था, तो उन्होंने अपनी राजधानी लवकोट ( वर्तमान – लाहौर, पाकिस्तान ) में अपना शासन प्रारम्भ किया था । इसी में आगे चलकर कनकसेन लवकोट से द्वारका आये थे । वही से उन्होंने परमार राजा को परास्त करके अपना राज्य स्थापित किया था, वर्तमान में उस स्थान को सौराष्ट्र के नाम से जाना जाता है ।

इतिहास में ज्ञात तथ्यों के हिसाब से इसी पीढ़ी में आगे चलकर राजा विजयसेन हुवे थे, जिन्होंने ही विजय नगर को बसाया था । कालान्तर में जब सत्ता का विस्थापन हुवा तो वह ईडर में स्थापित हुवे । जब ईडर से गुहिल मेवाड़ की और स्थपित हुवे थे तब रावल उपाधि धारण की थी, उसी में बप्पा रावल प्रमुख शासक थे ।

गुहिल वंश में दो प्रमुख उपाधियां चलन में थी, रावल और राणा । राजपरम्परा के अनुसार जेष्ठ को रावल और कनिष्ठ को राणा उपाधि दी जाती थी । जब रावल रतन सिंह और खिलजी का युद्ध हुवा था, उसमे राजपूतों को छल से परास्त कर दिया गया था, और वही से रावल शाखा का अंत हो गया था । उसके बाद चित्तौड़ पर सिसोसिया राणा शाखा का अधिपत्य स्थापित हो गया था ।

FAQ’s

सिसोदिया वंश की कुलदेवी का क्या नाम है?

सिसोदिया वंश, गुहिल, गुहिलोत वंश की कुलदेवी का नाम बाण माता ( बाणेश्वरी ) है। इनका पाठ स्थान चित्तौड़गढ़ में स्थित है।

सिसोदिया वंश का पहला शासक कौन था?

556 ई. में गुहिलादित्य ने सिसोदिया वंश की नींव रखी थी, और उन्हीं के नाम पर इस वंश का गुहिल पड़ा था। किन्तु सिसोदिया वंश का पहला शासक बप्पा रावल को ही माना जाता है, क्योकि उन्ही ने वास्तविक रूप से गुहिल वंश ( सिसोदिया वंश ) को समस्त विश्व में एक पहचान दी थी।

मेवाड़ और नेपाल के राजपरिवार में क्या सम्बन्ध है?

मेवाड़ के शासक रतनसिंह जी के भाई कुम्भकरण जी ने नेपाल पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था, और वही पर अपना शासन शुरू किया, अतः मेवाड़ और नेपाल के राजपरिवार एक ही गुहिल वंश की दो शाखाएं है।

चित्तौड़ में कितने शाका हुए?

चित्तोड़ में कुल तीन शाका हुवे थे, प्रथम रावल रतनसिंह जी के समय और द्वितीय शाका राणा विक्रमादित्य के समय और आखिरी तीसरा शाका सं 1567 में तत्कालीन राणा उदयसिंह जी के समय हुवा था।

सिसोदिया वंश की कितनी शाखाएं है?

समय-समय के अनुसार स्थान परिवर्तन और वंश वृद्धि के साथ ही सिसोदिया वंश में कई शाखाएं उत्पन्न हुई, इनमे से मुख्य रूप से 24 शाखाएं अभी ज्ञात है।

निष्कर्ष : सिसोदिया वंश – Sisodiya Vansh

पाठकों हमने इस लेख में सिसोदिया वंश का इतिहास और शाखाएं पर प्रकाश डाला है, आशा आपको यह लेख पसंद आया होगा। अगर आप हमारे निरंतर पाठक है तो आपको ज्ञात होगा की Karni Times पर हम राजपूत इतिहास और वंश के विषय में समय-समय पर जानकारी प्रदर्शित करते रहते है, अतः आप हमारी वेबसाइट को Follow जरूर करे।

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